HOPE is a Symbolist oil painting by the English painter George Frederic Watts, who completed the first two versions in 1886. It shows a lone blindfolded female figure sitting on a globe, playing a lyre that has only a single string remaining. The painting’s message of faith in the face of adversity fascinated Rev Jeremiah Wright, who delivered a sermon on the teaching from the painting in Chicago in 1990. He preached, “The harpist is sitting there in rags,her clothes are tattered …. [yet] the woman had the audacity to hope.” In audience was the young Barack Obama, the phrase “audacity to hope’ stuck irrevocably in Obama’s mind. He adapted it as the title of his rousing address to the Democratic Convention in 2004. In 2006, he used it again, as the title of his second book. In a similar vein, the poem exalts the reader to have ‘the audacity to hope (Umeed)’, probably it is the only thing that will help tide over difficult times.
घूमती है दुनिया , उम्मीद के दम पे,
मिलता है दिलासा , कभी नसीब के दम पे
अक्सर हंस लेता है इंसान , किसी और के ग़म पे
और अपनी रुसवाई को लेकर रोता है , कदम कदम पे
क्यों न देखें ज़माने को , एक हसीन नज़र से
पिरो दें कुछ रंग ज़िन्दगी में, कब तक रहेंगे डर के
जो होना है उसको तो, न रोक सका है कोई
फिर क्यों रुक जाते हैं कदम , किसी अनहोनी के डर से
खुशियों के देश का, ढूंढ रहा है हर कोई किनारा
प्यार के सागर में है सफर , तूफानी लहरों से है दिल को बचाना
सिर्फ इश्क दुनिया में , सब कुछ तो नहीं लेकिन
आखिर धड़कता है दिल , सिर्फ इश्क़ ही के दम पे
किसी को बना ले अपना , या फिर बना ले जगह किसी और के दिल में
रहे हमेंशा साथ किसी के, रहती है यही फितरत इंसान के दिल में
किसी को मिल जाए माशूक , तो उसका संभल जाता है दिल
विरह की आग में वरना , उसका अक्सर जलता जाता है दिल
समझ लें हम , अगर रिश्तों के दमको
समझ लें थोड़ा , कभी ज़्यादा तो कभी कम को
होगी सदा दुनिया में , रंगों की बहार
खुश मिज़ाज तितलियों सा बनेगा , तुम्हारा और हमारा व्यवहार
Awesome
wow… well written.
Simple ways suggested to follow, to make our living worthwhile and happy.
Thanks